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Monday, February 25, 2008

ग्रहण विधि निषेध

  1. सुर्यग्रहण मे ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण मे तीन प्रहर पूर्व भोजन नही करना चाहिये । बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सुर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुध्द बिम्ब देख कर भोजन करना चाहिये ।(१ प्रहर = ३ घंटे)
  2. ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नही तोडना चाहिए । बाल तथा वस्त्र नही निचोड़ने चाहिये व दंत धावन नही करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना । सोना, मल मुत्र का त्याग करना, मैथुन करना और भोजन करना - ये सब कार्य वर्जित है ।
  3. ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्दयेश्य करके जल मे जल डाल देना चाहिय । ऐसा करने से देनेवाले को उसका फल प्राप्त होता है और लेनेवाले को उसका दोष भी नही लगता।
  4. कोइ भी शुभ कार्य नही करना चाहिये और नया कार्य शुरु नही करना चाहिये ।
  5. ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थो मे तिल या कुशा डाली होती है, वे पदार्थ दुषित नही होते । जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिये ।
  6. ग्रहण वेध के प्रारंभ मे तिल या कुशा मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति मे ही करना चाहिये और ग्रहण शुरु होने से अंत तक अन्न या जल नही लेना चाहिये ।
  7. ग्रहण के सनमय गायो को घास, पक्षियो को अन्न, जरुरतमंदो को वस्त्र दान से अनेक गूना पुण्य प्राप्त होता है ।
  8. तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण मे महाफल है, किंतु संतानयुक्त ग्रहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नही करना करना चाहिये ।
  9. 'स्कंद पुराण' के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षो का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है
  10. 'देवी भागवत' मे आता है कि भुकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नही चाहिये ।

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