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Tuesday, October 20, 2009

शिशु व बालक सम्बन्धी बातें

बालक जन्मते ही दाई या नर्स बच्चे को नहलाकर पिता की गोद में बचे को दे और पिता बच्चे के कान में निम्नलिखित मंत्र बोले -


७ बार का उच्चारण करके "अस्मा भव" तू चटान की नाई अडिग रहना l


७ बार का उच्चारण करके "परशु भव" तू कुल्हाड़े की नाई विघ्न बाधा को काटने वाला बनना l


७ बार का उच्चारण करके "हिरन्यस्तुम भव" तू चैतन्य अमर आत्मा है, तुझे कोई दोष ना लगे l


फिर माँ दूध पिलाने से पहले शहद और घी विमिश्रण करके सोने की सलाई से बच्चे की जीभ पर "ॐ" लिखे, फिर उसे दूध पिलाये l



जन्म से २ साल तक शैशव अवस्था होती है - शैशव काल में बच्चा जब हाथ-पैर हिलाने लगे तो उसे गोद में ज्यादा नहीं लेना चाहिए, इससे बच्चों के विकास में बड़ी हानि होती है l हाथ पैर चलने दें, बच्चा मजबूत बने l उसकी प्रतिभा विकसित करने के लिए उसे हँसते-खेलते रखना चाहिए l उसकी अनुकूल वस्तुएं दिलानी चाहिए, नहीं दे सकते तो बोलना चाहिए, चिंता नहीं, आ जायेगी, उसको निषेधात्मक नहीं बोलना चाहिए l उसे पेट की बीमारियाँ ना हों, ये ध्यान रखना चाहिए, अगर पेट की तकलीफ है तो पपीते के बीज २-३ कूट के पिलायें अथवा तुलसी के बीज कूट दें फिर १/४ चुटकी चूर्ण, रात को भिगो कर सुबह पिलायें l



२-५ साल तक उसके मन में जिज्ञासा (जानने की वृति) फूटती है l जो वह पूछे उसे उत्साह से उत्तर दें और उसके सामने प्रश्न लायें जिससे उसकी प्रतिभा विकसित हो l उसे रात को कहानियों के माध्यम से जानने की वृति और विचार की शक्ति पैदा करें


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Mathura 1st Oct. 2009

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