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Wednesday, April 7, 2010

प्रसूता की देखभाल

प्रसूति के तुरंत बाद पेट पर रुई की मुलायम गद्दी रखकर कसकर पट्टा बाँधने से वायु-प्रकोप न होकर पेट वे पेड़ू अपनी मूल स्थिति में आते हैं। प्रसूति के बाद थकान होने से प्रसूता को सूखे, स्वच्छ कपड़े पहनाकर कान में रुई डालके ऊपर से रूमाल (स्कार्फ) बाँधकर 4-5 घंटे एकांत में सुला दें। प्रथम 10 दिन उठने बैठने में सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा गर्भाशय खिसक जाने व दूसरे अवयवों को नुकसान पहुँचने की संभावना होती है। 10 दिन बाद प्रसूता अपने आवश्यक काम करे पर मेहनत के काम सवा मास तक न करे। डेढ़ महीने तक प्रसूता को किसी प्रकार की विरेचक (दस्तावर) औषधि नहीं लेनी चाहिए। आवश्यकता पड़े तो एनीमा का प्रयोग करना चाहिए। सवा महीने तक प्रसूता को तेल मालिश अवश्य करवानी चाहिए।

प्रसव के बाद दूसरे दिन से लेकर कम-से-कम एक सप्ताह तक, हो सके तो सवा माह तक माता को दशमूल क्वाथ पिलाया जाय तो माता और बच्चे के स्वास्थ्य पर अच्छा असर होता है।

टिप्पणीः गतांक में नवजात शिशु की उल्व की सफाई के लिए सेंधा नमक व घी का प्रयोग तथा स्नान के लिए पीपल व बड़ की छाल का प्रयोग दिया गया था। ये प्रयोग वैद्य की सलाह से तभी करने चाहिए जब बालक की त्वचा मलयुक्त, अधिक चिकनी व लसलसी हो, अन्यथा केवल तिल का तेल लगाकर हलके गर्म पानी से स्नान कराना पर्याप्त है।

स्रोतः लोक कल्याण सेतु, जनवरी फरवरी 2009

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