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Tuesday, October 5, 2010

तुलसी व तुलसी-माला की महिमा

तुलसीदल एक उत्कृष्ट रसायन है। यह गर्म और त्रिदोषशामक है। रक्तविकार, ज्वर, वायु, खाँसी एवं कृमि निवारक है तथा हृदय के लिए हितकारी है।

  • सफेद तुलसी के सेवन से त्वचा, मांस और हड्डियों के रोग दूर होते हैं।
  • काली तुलसी के सेवन से सफेद दाग दूर होते हैं।
  • तुलसी की जड़ और पत्ते ज्वर में उपयोगी हैं।
  • वीर्यदोष में इसके बीज उत्तम हैं तुलसी की चाय पीने से ज्वर, आलस्य, सुस्ती तथा वातपित्त विकार दूर होते हैं, भूख बढ़ती है।
  • जहाँ तुलसी का समुदाय हो, वहाँ किया हुआ पिण्डदान आदि पितरों के लिए अक्षय होता है। यदि तुलसी की लकड़ी से बनी हुई मालाओं से अलंकृत होकर मनुष्य देवताओं और पितरों के पूजनादि कार्य करे तो वह कोटि गुना फल देने वाला होता है।
  • तुलसी सेवन से शरीर स्वस्थ और सुडौल बनता है। मंदाग्नि, कब्जियत, गैस, अम्लता आदि रोगों के लिए यह रामबाण औषधि सिद्ध हुई है।
  • गले में तुलसी की माला धारण करने से जीवनशक्ति बढ़ती है, आवश्यक एक्युप्रेशर बिन्दुओं पर दबाव पड़ता है, जिससे मानसिक तनाव में लाभ होता है, संक्रामक रोगों से रक्षा होती है तथा शरीर स्वास्थ्य में सुधार होकर दीर्घायु की प्राप्ति होती है। शरीर निर्मल, रोगमुक्त व सात्त्विक बनता है। इसको धारण करने से शरीर में विद्युतशक्ति का प्रवाह बढ़ता है तथा जीव-कोशों द्वारा धारण करने के सामर्थ्य में वृद्धि होती है। गले में माला पहने से बिजली की लहरें निकलकर रक्त संचार में रूकावट नहीं आनि देतीं । प्रबल विद्युतशक्ति के कारण धारक के चारों ओर चुम्बकीय मंडल विद्यमान रहता है। तुलसी की माला पहनने से आवाज सुरीली होती है, गले के रोग नहीं होते, मुखड़ा गोरा, गुलाबी रहता है। हृदय पर झूलने वाली तुलसी माला फेफड़े और हृदय के रोगों से बचाती है। इसे धारण करने वाले के स्वभाव में सात्त्विकता का संचार होता है। जो मनुष्य तुलसी की लकड़ी से बनी हुई माला भगवान विष्णु को अर्पित करके पुनः प्रसाद रूप से उसे भक्तिपूर्वक धारण करता है, उसके पातक नष्ट हो जाते हैं।
  • कलाई में तुलसी का गजरा पहनने से नब्ज नहीं छूटती, हाथ सुन्न नहीं होता, भुजाओं का बल बढ़ता है।
  • तुलसी की जड़ें कमर में बाँधने से स्त्रियों को, विशेषतः गर्भवती स्त्रियों को लाभ होता है। प्रसव वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है।
  • कमर में तुलसी की करधनी पहनने से पक्षाघात नहीं होता, कमर, जिगर, तिल्ली, आमाशय और यौनांग के विकार नहीं होते हैं।
  • तुलसी की माला पर जप करने से उँगलियों के एक्यूप्रेशर बिन्दुओं पर दबाव पड़ता है, जिससे मानसिक तनाव दूर होता है
  • इसके नियमित सेवन से टूटी हड्डियाँ जुड़ने में मदद मिलती हैं
  • तुलसी की पत्तियों के नियमित सेवन से क्रोधावेश एवं कामोत्तेजना पर नियंत्रण रहता है
  • तुलसी के समीप पड़ने, संचिन्तन करने से, दीप जलने से और पौधे की परिक्रमा करने से पांचो इन्द्रियों के विकार दूर होते हैं

ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2010

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