Search This Blog

Sunday, October 9, 2016

परम लाभ दिलानेवाले पंच पर्वों का पुंज : दीपावली

(दीपावली पर्व : २८ अक्टूबर से १ नवम्बर )

धनतेरस :

‘स्कंद पुराण’ में आता है कि धनतेरस को दीपदान करनेवाला अकाल मृत्यु से पार हो जाता है | धनतेरस को बाहर की लक्ष्मी का पूजन धन, सुख-शांति व आंतरिक प्रीति देता है | जो भगवान की प्राप्ति में, नारायण में विश्रांति के काम आये वह धन व्यक्ति को अकाल सुख में, अकाल पुरुष में ले जाता है, फिर वह चाहे रूपये – पैसों का धन हो, चाहे गौ – धन हो, गजधन हो, बुद्धिधन हो या लोक – सम्पर्क धन हो | धनतेरस को दीये जलाओगे .... तुम भले बाहर से थोड़े सुखी हो, तुमसे ज्यादा तो पतंगे भी सुख मनायेंगे लेकिन थोड़ी देर में फड़फड़ाकर जल – तप के मर जायेंगे | अपने – आपमें, परमात्मसुख में तृप्ति पाना, सुख - दुःख में सम रहना, ज्ञान का दीया जलाना – यह वास्तविक धनतेरस, आध्यात्मिक धनतेरस है |

नरक चतुर्दशी :

काली चौदस की रात, कालरात्रि साधकों के लिए तपस्या और मंत्रसिद्धि का अवसर प्रदान करनेवाली है | इस रात्रि का जागरण और जप चितशक्ति को परमात्मा में ले जाने में बड़ी मदद करते हैं |

दीपावली :

दीपावली में  ४ काम करने होते हैं –
१] एक तो घर का कचरा निकाल देना होता है ; जो आप दुःख, चिंता, भय, शोक, घृणा पैदा करें ऐसे हीनता – दीनता के, हलके विचारों को निकाल दें |
२] दूसरा, नयी चीज लानी होती है तो आप शांति, स्नेह, औदार्य और माधुर्य पैदा करें ऐसे नये विचार अपने चित्त में अधिक भरें |
३] तीसरी बात,  दीया जलाया जाता है अर्थात जो कुछ भी करें, आत्मज्ञान के प्रकाश में करें | काम आ गया, क्रोध, चिंता, भय आ गये लेकिन आये हैं तो अपने आत्मप्रकाश में उनको देखें, उनमें बहें नहीं तो ज्योति से ज्योति जगेगी | परिस्थिति के साथ भले थोड़ी देर मिल जायें लेकिन परिस्थिति तुम्हें दबाये नहीं, आकर्षित न करे |
४]  चौथा काम, मिठाई खाते और खिलाते हैं अर्थात हम प्रसन्न रहें और प्रसन्नता बाँटे | शत्रु को भी टोटे चबवाने की अपेक्षा खीर – खाँड़ खिलाने का विचार करें तो आपके चित्त में मधुरता रहेगी |

नूतन वर्ष –

वर्ष प्रतिपदा के दिन सत्संग के विचारों को बार – बार विचारना | भगवन्नाम का आश्रय लेना |

दीपावली की रात्रि को सोते समय यह निश्चय करेंगे कि ‘कल का प्रभात हमें मधुर करना है |’ वर्ष का प्रथम दिन जिनका हर्ष – उल्लास और आध्यात्मिकता से जाता है, उनका पूरा वर्ष लगभग ऐसा ही बीतता है | सुबह जब उठें तो ‘शांति, आनंद, माधुर्य .... आधिभौतिक वस्तुओं का, आधिभौतिक शरीर का हम आध्यात्मिकीकरण करेंगे क्योंकि हमें सत्संग मिला है, सत्य का संग मिला है, सत्य एक परमात्मा है | सुख-दुःख आ जाय, मान-अपमान आ जाय, मित्र आ जाय, शत्रु आ जाय, सब बदलनेवाला है लेकिन मेरा चैतन्य आत्मा सदा रहनेवाला है |’ – ऐसा चिंतन करें और श्वास अंदर गया ‘सोऽ ....’, बाहर आया ‘हम......’, यह हो गया आधिभौतिकता का आध्यात्मिकीकरण, अनित्य शरीर में अपने नित्य आत्मदेव की स्मृति, नश्वर में शाश्वत की यात्रा |

सुबह उठ के बिस्तर पर ही बैठकर थोड़ी देर श्वासोच्छ्वास को गिनना, अपना चित्त प्रसन्न रखना, आनंद उभारना |

भाईदूज –

यह भाई – बहन के निर्दोष स्नेह का पर्व है | बहन को सुरक्षा और भाई को शुभ संकल्प मिलते हैं | 


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१६ से 

No comments: