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Thursday, November 10, 2016

अमृत – औषधि दालचीनी

दालचीनी उष्ण, पाचक, स्फूर्तिदायक, रक्तशोधक, वीर्यवर्धक व मूत्रल है | यह वायु व कफ का शमन कर उनसे उत्पन्न होनेवाले अनेक रोगों को दूर करती है |

यह श्वेत रक्तकणों की वृद्धि कर रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाती है | बवासीर, कृमि, खुजली, राजयक्ष्मा ( टी,बी,), इन्फ्लूएंजा  ( एक प्रकार का शीतप्रधान संक्रामक ज्वर), मूत्राशय के रोग, टायफायड, ह्रदयरोग, कैन्सर, पेट के रोग आदि में यह लाभकारी है  | संक्रामक बीमारियों की यह विशेष औषधि है |

दालचीनी के कुछ प्रयोग

१] पेट के रोग व सर्दी – खाँसी : १ ग्राम ( एक चने जितनी मात्रा ) दालचीनी चूर्ण में १ चम्मच शहद मिलाकर दिन में १ – २ बार चाटने से मंदाग्नि, अजीर्ण, पेट की वायु, संग्रहणी रोग, अफरा और सर्दी – खाँसी में लाभ होता है |

२] ह्रदयरोग : एक ग्राम दालचीनी चूर्ण २०० मि.ली. पानी में धीमी आँच पर उबालें | १०० मि.ली. पानी शेष रहने पर उसे छानकर पी लें | इसे रोज सुबह लेने से कोलेस्ट्राँल की अतिरिक्त मात्रा घटती हैं | गर्म प्रकृतिवाले लोग एवं ग्रीष्म ऋतू में इसके पानी में दूध मिलाकर उपयोग कर सकते हैं | इस प्रयोग से रक्त की शुद्धि होती है एवं ह्रदय को बल मिलता है |

३] स्वरभंग, खाँसी व मुँह की बदबू : दालचीनी का छोटा-सा टुकड़ा चूसने से स्वरभंग ( गला बैठना ) की विकृति नष्ट होती है व आवास खुलती है | इससे खाँसी का प्रकोप शांत होता है, मुँह की बदबू दूर होती है, मसूड़े मजबूत बनते हैं और तोतलेपन में भी लाभ होता है |

सावधानियाँ : गर्भवती महिलाओं के लिए दालचीनी लेना निषिद्ध है | इसकी अधिक मात्रा लेने से पित्त ( उष्ण ) प्रक्रुतिवालों को सिरदर्द होता है | अत्यधिक मात्रा में, रात को या दीर्घकाल तक इसका सेवन करना हानिकारक है |


स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१६ से 

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