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Wednesday, January 25, 2012

श्रद्धा -भक्ति बढ़ाने हेतु

गीता के १२ वें अध्याय का दूसरा () और बीसवां (२०) श्लोक .. केवल दो श्लोक का पाठ कर के... भगवद गीता हाथ में रख कर..हम शुभ संकल्प करें कि " हे भगवन ! आप ने ये दो श्लोकों में जो परम श्रद्धा की बात बताई है वो हमारी हमारे गुरु चरणों में हो जाये " तो वो वचन भगवन के हैं ...भगवान सत्स्वरूप हैं तो उनके वचन भी सत है और हम उन वचनों का पाठ कर के संकल्प करें तो जो सचमुच अपने गुरु में श्रद्धा भक्ति बढ़ाना चाहते हैं उनका संकल्प भी ऐसा ही हो जाएगा

शोल्क :-
मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।
श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।2।।

श्री भगवान बोलेः मुझमें मन को एकाग्र करके निरन्तर मेरे भजन-ध्यान में लगे हुए जो भक्तजन अतिशय श्रेष्ठ श्रद्धा से युक्त होकर मुझ सगुणरूप परमेश्वर को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं।(2)

ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।
श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः।।20।।

परन्तु जो श्रद्धायुक्त पुरुष मेरे परायण होकर इस ऊपर कहे हुए धर्ममय अमृत को निष्काम प्रेमभाव से सेवन करते हैं, वे भक्त मुझको अतिशय प्रिय हैं।(20)

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- श्री सुरेशानंदजी अहमदाबाद 16th Jan' 2012

1 comment:

Rajesh Kumawat said...

मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।
श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।2।।

श्री भगवान बोलेः मुझमें मन को एकाग्र करके निरन्तर मेरे भजन-ध्यान में लगे हुए जो भक्तजन अतिशय श्रेष्ठ श्रद्धा से युक्त होकर मुझ सगुणरूप परमेश्वर को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं।(2)
ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।
श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः।।20।।

परन्तु जो श्रद्धायुक्त पुरुष मेरे परायण होकर इस ऊपर कहे हुए धर्ममय अमृत को निष्काम प्रेमभाव से सेवन करते हैं, वे भक्त मुझको अतिशय प्रिय हैं।(20)